Friday, January 28, 2011

वह ज़ालिम गोलगप्पेवाला..........

कभी कभी आफिस से घर लौटते समय बाज़ार की तरफ रुख करना पड़ता है। रोज़मर्रा के कई खरीदारियां होती है। और बाज़ार में घुसते ही अगर एक गोलगप्पेवाला अपनी स्टाल लगाए बैठा हो तो खरीदारी का मज़ा कुछ और बढ़ जाता है। थके होने पर भी बाज़ार जाना उतना बुरा नहीं लगता।
गोल्गप्पेवाला गोलगप्पे बड़ी अच्छी बनाता है। उसे सालोंसाल इसी जगह गोलगप्पे बेचते हुए देख रही हूँ। कभी भी उसके बनाए हुए गोलगप्पों में मसाले कम ज्यादा या स्वाद ऊपर नीचे नहीं होता। बस फर्क इतना ही है कि पहले बेचनेवाला जवान था और अब बूढ़ा हो चला है। बुढ़ापे के साथ साथ थोड़ा चिड़चिड़ा सा भी। सुबह से शाम तक खड़े रहने कि अब उसकी हिम्मत नहीं रहती नाही ताक़त । मुझे कैसे पता ? उसीने बताया था एक दिन बातों बातों में । कभी कभी जल्दी ही दुकान बंद कर वह घर चला जाता है । बिक्री भी उसकी खूब है । ऐसा भी हुआ है कि उसके दुकान तक जाते ही उसने हमें उलटे पैर वापस भेज दिया है यह कह कर कि सब बिक गया है, अब दीदी और कुछ न बचा खिलाने को।
कुछ दिन हुए बड़ी खांसी और तेज़ बुखार से परेशान थी । छाती और सर में दर्द भी था। निमोनिया की आशंका कर रही थी पर चिकित्सक ने आश्वासन दिया की चिंता करनेवाली कोई बात नहीं, मामूली सर्दी जुखाम है दवाई लेने से ठीक हो जाएगा । हाँ , दवाइयों से असर भी खूब जल्दी हुआ पर एक सुखी खांसी थी जो जाने का नाम नहीं ले रही थी। इसी बीच मन हुआ की चलो बूढ़े के चटपटे गोलगप्पे खाया जाए। कभी कभी यूँ भी हुआ है की ज़हर से ज़हर मारा गया है । तो यह भी मुमकिन था की गोलगप्पे के खाने से खांसी ठीक हो जाए । जैसा सोचा वैसा ही किया और चल पड़े गोलगप्पे की दूकान पर । खरीदारी तो खैर इक बहाना था ।
स्टाल तक पहुँच कर बड़े चाव और आत्मविश्वास के साथ एक प्लेट गोलगप्पे खिलाने की फरमाइश कर बैठी । पर किस्मत खराब थी । गोलगप्पेवाले से फरमाइश करते ही वही पुरानी खांसी छूट पड़ी । गोलगप्पेवाले ने एक नज़र मुझे देखा और बड़े गंभीरता और ठहरी हुई आवाज़ में बोला "अभी आप खांस रहे हो और गोल गप्पे भी मांग रहे हो । फिर गोल गप्पे खाओगे । उसके साथ लाल चटनी भी खाओगे । फिर पानी मांगोगे और गोल गप्पे का पानी पीओगे । उसके बाद जब और तबियत खराब होगी तो कहोगे गोल गप्पे खाकर बीमार पड़े "। गोल गप्पे वाला सहज और व्यंग रहित साफ़ शब्दों में एक सच्चाई बयान कर गया । पर एहम को चोट लगी । चोट ज़ख़्म में बदलने में देर न हुई जब साथ खडी एक कमसिन लड़की गोल गप्पेवाले की बातें सुन कर खिलखिला कर हंस पड़ी । मैं चोट खाए हुए घायल शेरनी की तरह झल्ला कर बोली "भैया ! ठीक है । जब हम पूरी तरह खांसी से निजात पा लेंगे तभी आपके गोलगप्पे खाने आयेंगे "। यह कह कर मैं वहाँ से भाग खडी हुई ।
उसके बाद कई हफ्ते गुज़र गए हैं । मार्किट भी कई बार जाना हुआ है पर गोल गप्पे वाले के स्टाल पर जा गोल गप्पे खाना न हुआ । जैसे जैसे दिन बीते नाराज़गी कम होती चली गयी पर एक बात ज़हन को रह रह के कचोटती है की जब गोल गप्पे खाने का सबसे ज्यादा मन था तब गोलगप्प्पेवाले ने साथ न दिया । सच में मौके पर गोल गप्पे वाला बड़ा ज़ालिम निकला.............

1 comment:

  1. आपके दिल की चुभन छोटी होकर भी गहरी है । बात का घाव बडी मुश्किल से भरता है गीताजी । मैं आपके दर्द को महसूस कर रहा हूँ ।

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