Tuesday, January 25, 2011

माथुर साहब सिर्फ आपके लिए...

आश्चर्य की बात है और यह कैसे हुआ मुझे भी नहीं पता पर यह हो रहा है और इसी बात पर आनंद लेने में ही शायद, नहीं, बल्कि सच में मज़ा है! मेरे परम मित्र माथुर साहब ने जब मुझसे पूछा कि हिंदी में ब्लौग कैसे लिखे - एक व्यवहारिक तथा उपभोक्ता-से-मैत्रीपूर्ण (यूज़र फ्रेंडली ) ब्लौग स्थान बताएं तो मैं झेप गयी क्योंकि ऐसा कोई ब्लौग स्थान मुझे मालूम न था ! परन्तु मित्र की मदद करने की इच्छा को दमन न कर पाए और गूगल खोज की शरण लेना मैंने अनिवार्य समझा। यह और भी आवश्यक इसलिए था क्यूंकि माथुर साहब इतने अच्छे और सशक्त लेखक हैं। उन्होंने मुझे आश्वासन भी दिया था कि अपने निजी ब्लौग होने पर वे उसमे अपने हिंदी लेखनियां ज़रूर शामिल करेंगे । इसमे मेरी निजी स्वार्थ भी सम्मिलित थी । मैंने ही माथुर साहब को हिंदी में ब्लौग लिखने पर प्रोत्साहित किया था । अब अगर मदद न कर पायें तो माथुर साहब सोच न बैठे कि मौखिक प्रोत्साहन तो मित्र ने दे दी पर जब असली सहायता कि बारी आई तो मोहतरमा ढूंढने पर भी मिली नहीं।

बड़ी विडंबना थी । एक ओर मित्रता का तकाजा था तो दूसरी ओर उपयुक्त ब्लौग न मिलने की हताशा । भरसक कोशिश करने पर भी अपेक्षित ब्लौग साईट न मिला। समझ न आ रहा था कि क्या करें । परिश्रम करने पर भी जब नाकामियाबी हाथ आती है तो विवशता और भी बढ़ जाती है। वैसे तो दो चार ब्लौग के "लिंक" मैंने शीघ्र ही इ-मेल पर भेज दिए थे परन्तु जब माथुर साहब का कोई जवाब या दूरभाष न आया तो मैंने समझ लिया कि मेरा पत्राचार से प्रेषित "लिंक" कोई काम का न होगा ।

सोच ही रही थी कि क्या करूँ कि छब्बीस जनवरी का दिन आया। इस दिन मनोरंजन का कोई भी साधन उपलब्ध न होने पर, सही अर्थ में छुट्टी मनाई जाती है। आतंकवाद के भय से बाहर जा नहीं सकते, दुकानें वगैरा बंद रहती हैं, टीवी और रेडिओ पर राष्ट्रीयता बोध से ओतप्रोत गानें सुनें या फिल्में देखें अन्यथा ब्लौग लिखें। मैंने आखरी विकल्प को ही चुन लिया। एक पूर्वलिखित लेखनि में कुछ चूक नज़र आई तो उसे ठीक करने लगीं। ओन-लाईन सुधार करते वक़्त अंग्रेजी शब्द "होम" टाइप किया तो वह अनायास ही हिंदी लिपि में आने लगा। कई बार उसको मिटाकर ठीक करने लगीं तो वह हठीला सा अपने जगह से हिलने से मना कर दिया। पहले तो गुस्सा आया फिर क्रोध आश्चर्य में और अंत में आश्चर्य आनंद में तब्दील हुआ।
पर यह हुआ कैसे ? फिर नज़र पड़ी स्क्रीन के ऊपर बाईं ओर हिंदी लिपि का "अ" लिखा हुआ था। हो सकता है टंकन करते किसी समय उस पर मेरे "चूहे" ने दांत मार कर उसे कुतर गया होगा यानि "क्लिक" हो गया होगा । अंग्रेजी में टंकन करते वक़्त उस पर कभी न नज़र गयी थी और न अपना प्यारा चूहा । पर ज़रुरत पड़ने पर अपने आप साधन हाथ आ जाते है । भगवान की योजनाओं के आगे हमारी प्रयास व कलाकारी ज्यों की त्यों धरी रह जाती है!!!

अब और बस क्या था ! जिस "मित्रता पूर्ण" ब्लौग
की अपेक्षा थी वह मिल गया। अब सिर्फ माथुर साहब को बताना बाकी था तो इससे बेहतर बताने का उपाय और क्या होगा कि एक हिंदी में ब्लौग लिख कर बताया जायें। तो यह रहा ......माथुर साहब सिर्फ आपके लिए।

2 comments:

  1. तहेदिल से मैं शुक्रगुजार हूँ आपका गीता जी ।

    जितेन्द्र माथुर

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